Thursday, June 9, 2016

अब पछताते होत क्या ?

सोचा आध्यात्मिकता निष्क्रिय जीवन मार्ग।
क्या जीवन है ईश्वर ध्यान।
करतल भिक्षा तरुतल वासा।
मठ भोजन मठ निद्रा।
हरिदासों का दास बन जीना क्या जीना।
लौकिक आनंद जितना,
शादी संतानों का आनंद।
वातानुकूल गाडी कमरा।
पाँच नक्ष्त्र होटल वह अर्द्ध नग्न नाच।
दैख। दुनिया में आनंद का उमड।
  देखा ! अचानक सर के आधे बाल का लापता।
जवानी के जोश का लापता।
शरीर की शिथिलता, गालों की झुर्रियाँ।
  आहा!हमें पूर्वजों ने भक्ति भजन का नाच सिखाया।
तुलसीदास  का  जीवन में उनकी पत्नी का
हाड माँस सडने शरीर प्रेम छोड,
परमात्मा  के ध्यान में लग।
तभी  संत तिरुवल्लुवर की याद आयी,
सीखो। बगैर कसर के सीखो। सीखी हुई बात का करो
अक्षरसः पालन।
सिखाना सीखना अासान।
शैतान लौकिकता में से बचना कितना मुश्किल।
हमारे पूर्वजों  के वानप्रस्त जीवन  के
संन्यासी अवस्था में पछताना,
कबीर का दोहा कह रहा  है आज भी
आछे दिनपाछे गये ,अब हरी से होत क्या।
अब पछताते होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।

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